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आचार्य श्रीराम शर्मा >> सुनसान के सहचर

सुनसान के सहचर

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : युग निर्माण योजना गायत्री तपोभूमि प्रकाशित वर्ष : 2006
पृष्ठ :104
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 15534
आईएसबीएन :0

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सुनसान के सहचर

18

सँभल कर चलने वाले खच्चर


पहाड़ों पर बकरी के अतिरिक्त खच्चर ही भार वाहन का काम करते हैं। सवारी के लिए भी उधर वे ही उपलब्ध हैं। जिस प्रकार अपने नगरों की सड़कों पर गाड़ी, ठेले, ताँगे, रिक्शे चलते हैं। इसी तरह चढ़ाव-उतार की विषम और खतरनाक पगडण्डियों पर यह खच्चर ही निरापद रूप से चलते-फिरते नजर आते हैं। 

देखा कि जिस सावधानी से ठोकर और खतरा बचाते हुए इन पगडण्डियों पर हम लोग चलते हैं उसी सावधानी से यह खच्चर भी चल रहे हैं। हमारे सिर की बनावट ऐसी है कि पैरों के नीचे कीजमीन को देखते हुए ठोकरों को बचाते हुए आसानी से चल सकते हैं, परखच्चर के बारे में ऐसी बात नहीं है। उनकी आँखें ऐसी जगह लगी हैं औ गरदन का मुड़ाव ऐसा है जिससे सामने देखा जा सकता है, पर पैरोंके नीचे देख सकना कठिन है। इतने पर भी खच्चर का हर कदम बड़ी सावधानी से और सही-सही रखा जा रहा था, जरा-सी चूक होने पर वह भी उसी तरह लुढ़ककर मर सकता है, जैसे कल एक बछड़ा गंगोत्री की सक पर चूर-चूर हुआ मरा पड़ा देखा था, बेचारे का पैर जरा-सी असावनी से गलत जगह पर पड़ा कि अस्सी फुट की ऊँचाई से आ गिरा औउसकी। हड्डी पसली चकनाचूर हो गयी। ऐसा कभी-कभी ही होता है। वच्चरों के बारे में तो ऐसी घटना कभी नहीं सुनी गयी। 

लादने वालों से पूछा तो उनने बताया कि खच्चर रास्ता लने के बारे में बहुत ही सावधानी और बुद्धिमत्ता से काम लेता है। ते चलता है; पर हर कदम को थाह-थाह कर चलता है। ठोकर या खते हो तो तुरन्त सँभल जाता है, बढ़े हुए कदम को पीछे हटा लेता है अं दूसरी ठीक जगह पैर के सहारे तलाश कर वहीं कदम रखता है। लने में उसका ध्यान अपने पैरों और जमीन की स्थिति के सन्तुलन में ही लगा रहता है। यदि वह ऐसा न कर सका होता तो इस विषम भूमि में उसकी कुछ उपयोगता ही न होती। 

खच्चर की बुद्धिमत्ता प्रशंसनीय है। मनुष्य जबकि बिना आगा-पीछा सोचे गलत दिशा में कदम उठाता रहता है और एक के बाद एक ठोकर खाते हुए भी सम्भलता नहीं, पर इन खच्चरों को तो देखो, कि हर कदमको सन्तुलन बनाए रखने में जरा भी नहीं चूकते। यदि इस ऊबड़-खबड़ दुरंगी दुनियाँ के जीवन मार्ग पर चलते हुए इन पहाड़ी खच्चरों की भाँति अपना हर कदम सावधानी के साथ उठा सकने में समर्थ हो सकेंतो हमारी स्थिति वैसी ही प्रशंसनीय हो, जैसी इस पहाड़ी प्रदेश में खच्चों की है। 

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    अनुक्रम

  1. हमारा अज्ञात वास और तप साधना का उद्देश्य
  2. हिमालय में प्रवेश : सँकरी पगडण्डी
  3. चाँदी के पहाड़
  4. पीली मक्खियाँ
  5. ठण्डे पहाड़ के गर्म सोते
  6. आलू का भालू
  7. रोते पहाड़
  8. लदी हुई बकरी
  9. प्रकृति के रुद्राभिषेक
  10. मील का पत्थर
  11. अपने और पराये
  12. स्वल्प से सन्तोष
  13. गर्जन-तर्जन करती भेरों घाटी
  14. सीधे और टेढ़े पेड़
  15. पत्तीदार साग
  16. बादलों तक जा पहुँचे
  17. जंगली सेव
  18. सँभल कर चलने वाले खच्चर
  19. गोमुख के दर्शन
  20. तपोवन का मुख्य दर्शन
  21. सुनसान की झोपड़ी
  22. सुनसान के सहचर
  23. विश्व-समाज की सदस्यता
  24. लक्ष्य पूर्ति की प्रतीक्षा
  25. हमारी जीवन साधना के अन्तरंग पक्ष-पहलू
  26. हमारे दृश्य-जीवन की अदृश्य अनुभूतिया

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